Book Title: Mrutyu Chintan
Author(s): P M Choradia
Publisher: Akhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ अधिकाधिक सुन्दर और सुखद बनाने का प्रयत्न करते हैं। इसके लिए पण्डित मरण या समाधि मरण आवश्यक है। कहा भी हैएगम्मि भव ग्राहणे, समाधि मरणेण जो मइदिजीवो । ण हु हिंडदि बहुसो, सतठे भवे पमोत्तूण ।। अर्थात् एक भव में जो जीव समाधि मरण पूर्वक त्याग करता है, वह सात-आठ भवों से अधिक काल तक संसार में भ्रमण नहीं करता। मत्यु के समय निकट के सम्बन्धी एवं इष्ट मित्रों की जिम्मेदारियाँ कभी-कभी व्यक्ति लम्बी बीमारी के दौर से गुजरता है, इससे उसके स्वास्थ्य में धीरे-धीरे निरन्तर गिरावट आती है। बीमार व्यक्ति स्वयं यह महसूस करने लगता है कि अब वह वापस स्वस्थ न हो सकेगा और उसका काल निकट है। ऐसी परिस्थिति में जो ज्ञानी हैं, जागरूक हैं, वे सही स्थिति का अन्दाजा कर लेते हैं। वे अपनी जिम्मेदारियों से हल्के हो जाते हैं। परिग्रह का जो बोझ है, उसे भी वे अपने सम्बन्धियों या शुभ कार्यों में खर्च कर, हल्के हो जाते हैं। सभी से क्षमायाचना कर लेते हैं और मन को निशल्य कर लेते हैं। प्रभु-स्मरणमें तल्लीन रहते हैं। यद्यपि शरीर की जर्जर अवस्था तथा रोगों के आक्रमण के कारण उन्हें भयंकर कष्ट होता है लेकिन For Private and Personal Use Only

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