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गई है। भगवान महावीर ने अपने अन्तिम समय में देशना देते हुए देह का त्याग किया। उनका मुत्यु-महोत्सव नौ मल्लवी, नौ लिच्छवी, काशी-कौशल देश के अठारह गण राजाओं ने मनाया । देवताओं ने रत्नों के दीपक जलाकर प्रकाश किया । देवताओं के गमनागमन से भूमंडल आलोकित हो गया। तीर्थंकरों के निर्वाण दिवस को मृत्यु कल्याणक दिवस कहते हैं और आज भी इसे बड़ी श्रद्धा और भक्ति से निर्वाण कल्याणक के रूप में मनाते हैं।
जो साधना में जागरूक हैं तथा मृत्यु को सदैव स्मरण रखते हैं, उनके परिणाम आसक्ति और शोक से रहित हो जाते हैं। उनके लिए मृत्यु का अवसर मृत्यु महोत्सव के रूप में परिणत हो जाता है। उनकी अन्तरात्मा यही कहती है
जिस मरण से जग डरे, मेरे मन आनन्द । मरने ही ते पाइये, पूरन परमान्द ।।
-संत कबीर जिस मृत्यु का नाम सुनकर सम्पूर्ण संसार भयभीत होता है, उसकी कल्पना से मुझे बड़ा आनन्द मिलता है। कब वह शुभ दिन होगा, जबकि मैं भी मरूँगा और एक अखण्ड' प्रानन्दमय बह्म को प्राप्त करूँगा।
पंडित मरण ५ प्रकार का होता है :
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