Book Title: Mrutyu Chintan
Author(s): P M Choradia
Publisher: Akhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाती है। उसकी सारी प्रवृत्तियाँ पागलों की तरह होती हैं। पागल किसी भी कार्य को करने की सूझ-बूझ नहीं रखता। ऐसी अवस्था में मृत्यु पाने वाला अपनी गति बिगाड़ देता है क्योंकि मरते समय उसके विचार शुद्ध नहीं होते। क्रोध से पीड़ित व्यक्ति कभी-कभी आग में कूदकर, रेल के नीचे आकर, समुद्र, तालाब के पानी में डूबकर किसी पहाड़ी की चोटी से गिरकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर देता है। अतः ऐसा मरण या आत्महत्या नादानगी में की जाती है जो निंदनीय है । आचार्यों ने बाल मरण १२ प्रकार का बतलाया है १. भूख और प्यास से छटपटाते मरना। २. इन्द्रियों के वशीभूत होकर दुःखी मरण । ३. शरीर में बाण, गोली, तीर आदि लगने से मृत्यु। ४. पवंत अथवा किसी ऊँचाई से गिरकर मरना। ५. अग्नि में कूदकर अथवा घासलेट आदि डालकर जलना। ६. जहर आदि विषैली चीजें खाकर मरना। ७. वृक्ष से गिरकर मरना । ८. पानी में डूबकर मरना। ९. गले में फांसी लगाकर मरना। १०. जंगली जानवरों का शिकार होकर मरना। For Private and Personal Use Only

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