Book Title: Mrutyu Chintan
Author(s): P M Choradia
Publisher: Akhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैयार है उसको किसी प्रकार घबराने की आवश्यकता नहीं है। घबराता वही है जो तैयार न हो। मृत्यु की स्मृति रखने से जीवन में समता आ जाती है। परिषह या कष्ट उपस्थित होने पर वह घबराता नहीं है । जागरूक रहने से वह निम्न पाठ बोलकर सागारी संथारा कर लेता है-- आहार शरीर अरु उपाधि, पचखू पाप अठार। मरण पाऊँ तो वोसिरे, जीऊँ तो आगार ॥ परिषह या कष्ट टल जाने पर वे नमस्कार मंत्र का स्मरण कर अपने दैनिक कार्यों में लग जाते हैं। जागरूक साधक रात्रि को सोते समय भी उपर्युक्त पद्य बोलकर निद्रा लेते हैं ताकि यदि कदाचित् निद्रा में ही मृत्यु हो जाए, तो खाली नहीं मरते। महापुरुषों के मृत्यु सम्बन्धी विचार मृत्यु के प्रति हमारा दृष्टिकोण हो हमारे जीवन के प्रति तथा परिवार, समाज, धन, सत्ता, यश आदि के प्रति दृष्टिकोण का निर्धारण एवं निश्चय करता है। मृत्यु को सहज भाव से स्वीकार करने पर जीवन सरल और सुगम हो जाता है तथा हमारा दृष्टिकोण स्वस्थ एवं सही हो जाता है। अतः महान् व्यक्तियों ने मृत्यु का सहर्ष आलिंगन कर सही जीवन जीने की कला का उपदेश दिया है। For Private and Personal Use Only

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