Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

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Page 6
________________ भूमिका यह स्थूल दृश्य जगत् जितना हमें दिखाई देता है उससे कई गुना वह सूक्ष्म है जिससे इस स्थूल जगत् का निर्माण हुआ है । जिस प्रकार ऊर्जा ही पदार्थ का कारण है उसी प्रकार यह सूक्ष्म जगत ही स्थूल का कारण है। जिस प्रकार समुद्र में तैरते हुए हिमखण्ड का ६/१० भाग पानी के भीतर रहता है उसी प्रकार इस स्थूल जगत का बहुत बड़ा भाग सूक्ष्म रूप में है जो स्थूल आँखों से नहीं दिखाई देता। इसके लिए दिव्य दृष्टि आवश्यक है जो कुछ ही मनीषियों ने प्राप्त की है. इसलिए उनके वर्णन को प्रामाणिक माना जाता रहा है। .. इस सम्पूर्ण जड़-चेतनात्मक जगत का ज्ञान ही अध्यात्म का विषय है जबकि विज्ञान केवल स्थूल जगत के रहस्यों का उद्घाटन करता है। इन दोनों के दो भिन्न क्षेत्र हैं । अध्यात्म का सम्बन्ध चेतना से है तथा विज्ञान का पदार्थ से। इसलिए इन दोनों की न कोई समता है न विरोध । अध्यात्मवादी सत्य को प्रकट करता है एवं वैज्ञानिक परीक्षण द्वारा सत्य की खोज करता है। एक ने जाना है व दूसरा जानने की प्रक्रिया से गुजर रहा है। इसलिए अध्यात्म ज्ञान को सर्वोपरि माना जा सकता है। किन्तु अध्यात्म में अन्धविश्वास की सम्भावनाएँ अधिक हैं एवं विज्ञान की एक सीमा है जिसके आगे उसकी गति नहीं है। इसलिए दोनों की ही जीवन में श्रेष्ठता लाने के लिए आवश्यकता है।

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