Book Title: Mantra Maharnav
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Page 653
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir राघवपृष्ठस्थः पृष्ठदेशं मनोरमः // नाभिं गंभीरनाभिस्तु कटिं च रुक्ममेखलः // 13 // गुह्यं पातु सहस्रास्यः पातु लिंग हरि प्रियः॥ ऊरू पातु विष्णुतुल्यः सुमुखोऽवतु जानुनी // 14 // नागेन्द्रः पातु मे जंघे गुल्कौ नूपुरवान्मम // पादावंगदतातोऽव्यात्पात्वं गानि सुलोचनः // 15 // चित्रकेतुपिता पातु मम पादांगुलीः सदा // रोमाणि मे सदा पातु रविवंशसमुद्भवः // 16 // दशरथसुतः / पातु निशायां मम सादरम् // भूगोलधारी मां पातु दिवसेदिवसे सदा // 17 // सर्वकालेषु मामिंद्रजिद्धंताऽवतु सर्वदा // एवं सौमित्रि कवचं सुतीक्ष्ण कथितं मया // 18 // इदं प्रातः समुत्थाय ये पठंत्यत्र मानवाः // ते धन्या मानवा लोके तेषां च सफलो भवः // 19 // सौमित्रेः कवचस्यास्य पठनान्निश्चयेन हि // पुत्रार्थी लभते पुत्रान्धनार्थी धनमानुयात् // 20 // पत्नीकामो लभेत्पत्नी गोधनार्थी ता। व गोधनम् // धान्यार्थी प्रामुयाद्धान्यं राज्यार्थी राज्यमामुयात् // 21 // पठितं रामकवचं सौमित्रिकवचं विना // घूतेन हीनो नैवेद्य | जास्तेन दत्तो न संशयः॥ 22 // केवलं रामकवचं पठितं मानवैयदि // तत्पाठेन तु संतुष्टो न भवेद्रघुनन्दनः // 23 // अतः प्रयत्न तश्चेदं सौमित्रिकवचं नरैः॥ पठनीयं सर्वदैव सर्ववांछितदायकम् // 24 // इति श्रीमदानन्दरामायणे सुतीक्ष्णागस्त्यसंवादे श्रीलक्ष्मणकवचं समाप्तम् // 4 // अथ साताकवचप्रारम्भः // या सीताऽवनिसंभवाऽथ मिथिलापालेन संवर्द्धिता पद्माक्षावनिभुक्सुताऽनलगता या मातु लिंगोद्भवा // या रत्ने लयमागता जलनिधी या वेदवारं गता लंकां सा मृगलोचना शशिमुखी मां पातु रामप्रिया // 1 // अस्य श्रीसी। ताकवचस्तोत्रमंत्रस्य अगस्तिर्कषिः / श्रीसीता देवता / अनुष्टुप् छन्दः / रमेति बीजम् / जनकजेति शक्तिः / अवनिजेति कीलकम् / / पद्माक्षसुतेत्यस्वम् / मातुलिंगीति कवचम् / मूलकासुरघातिनीति मंत्रः॥श्रीसीतारामचन्द्रप्रीत्यर्थ सकलकामनासिद्धयर्थं च जपे विनियोगः॥ For Private And Personal Use Only

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