Book Title: Mantra Maharnav
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir ॐ तैलेन सह घर्षयेत् // श्मशाने कज्जलं पार्य नेत्रे तेनजियेत्ततः॥ 8 // अदृश्यो भवति क्षिप्रं देवैरपि न दृश्यते // काकोलूकस्य पिच्छानि आत्मकेशास्तथैव च // 9 // अंतधूमगतान् दग्ध्वा सूक्ष्मजूर्ग तु कारयेत् // अंकोलतेलगुटिकां कृत्वा शिरसि धारयेत // 10 // दृश्यो जायते क्षिप्रं देवानामपि दुर्लभम् // काकोलूकस्य नीलस्य ग्राह्ये एतेषु च लोचने // 11 // तल्लोहेनांजयेच्चक्षुरहस्यो भवति / ध्रुवम् // नेत्रे प्रक्षाल्य गोमूत्रर्मानुषी दृक् प्रजायते // 12 // उलकस्य शृगालस्य सूकरस्याक्षिरक्तकम् // नीलांजनयुतं पिष्ट्वा दग्ध्वा श्रा वपुटे दहेत् // 13 // तेनांजितो नरोऽदृश्यो जायते नात्र संशयः // सर्वयोगेन वै मंत्रं कथयामि शृणु प्रिये॥१४॥तत्र मंत्रः // ॐ नमो भगवते उड्डामरेश्वराय नमो रुद्राय हिलि 2 चिलि 2 व्यायचर्मपरिधानाय मरुल 2 कुरु 2 चंडप्रचंड किलिकिलि स्वाहा” उक्तयो / गानामयं मंत्रः॥ अन्यत् // रविदिने घूकमांस रक्तचंदनकुंकुमैः // मह षिष्ट्वा वटीं कृत्वा टंकमानं तदा बुधैः // 15 // धूपो देयो गुग्गुलो श्व मंत्रात्समभिमंत्रयेत् // नाबूले दीयते यस्मै सा वश्या भवति ध्रुवम् // 16 // चूकतालुं च तांबूले धृत्वा नारी प्रदापयेत् // वश्या / भवति सा नारी प्राणरपि नैरपि // 17 // कटं गृहीत्वा तु नागकेसरकेसरैः॥ गोरी चनेन संयुक्त मंत्रात्समभिमंत्रयेत् // 18 // अष्टोत्तरशतं वारं तिलक क्रियते नरैः // तस्य दर्शनमात्रेण वश्या भवति निश्चितम् // 39 // चूकजिह्वां निवपत्रैः एकीकत्य प्रपेषयेत॥ नत्रांजनेन वै पश्येत्सर्वे वश्या भवंति हि॥२०॥घूकनेत्रं गृहीत्वा तु विडालोनेत्रसंयुतम् // वत्सनागसमायुक्तं नागकेशरकेशकैः // 21 // रससर्षपयोगेन समभागेन पेषयेत् // श्मशाने गर्तकुंडे तु स्थापयदिनमतकम् // 22 // ततो निष्कास्य यस्या वै शिरसि प्रक्षिपे For Private And Personal Use Only

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