Book Title: Mantra Maharnav
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________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kabat.org Acharya Shet Kalassagarsun yanmandir मं० म० बुधः // विनाह्वानप्रसंगेन साऽयाति निश्चितं प्रिया // 23 // पूर्वोक्तसर्वव्यश्च नांदनवनकपासकैः / / वति कृत्या प्रयत्नेन एकवणि नापू० खं० 1 // 320 // गोघृतम् // 24 // मृत्पात्रे तद्विनिःक्षिप्य मघायां रविवासरे // अर्द्धरात्रे भवेन्नमः श्मशाने विजितेन्द्रियः॥२५॥श्लाटुखर्परपा / मि० त० त्रेण ह्यथ वा नरकपालके // कज्जलं पारयेद्यत्नान्मंत्रेण चाभिमंत्रयेत् // 26 // अष्टोत्तरशतं वारं गुग्गुलुं धूपयेत्ततः // सिद्धो भवति सर्वत्र काम्यकर्मणि योजयेत् // 27 // योपिद्वस्खे कजलेन रेखामेकां तु कारयेत् // वश्याऽध्याति तथा नारी यथाब्धौ सरिदागमः॥२८॥ घूकविष्ठां गृहीत्वा तु काकविष्ठासमायताम्॥यस्या मूर्ध्नि क्षिपेच्चूर्ण वश्या भवति निश्चितम्॥२९॥उलूकहृदयं मांस गोरोचनसमन्वितम् / / अष्टाविंशतिवारं च मंत्रेणैवानिमंत्रयेत् // 30 // अंजनं चांजयेन्नेत्रे दृष्टिमात्रेण वश्यताम् // योगसिद्धिकरं मंत्र कथयामि शृणु प्रिये // 33 // तत्र मंत्रः // “ॐ नमो महापंखेश अमुकंमे घशे कुरुकुरु स्वाहा // " उक्तयोगानामयं मंत्रः // अन्यत् ॥"एकहस्ते काकपक्षे चूकपक्षे परे करे // मंत्रयित्वा मेलयित्वा कुशसूत्रेण बंधयेत् // 32 // अंजलिभिजलेनैव तर्पयेद्धस्तपक्षके // एवं सतदिनं कुर्याद कायोत्तरशतं जपेत् // 33 // विद्वेषं कुरुते यस्य भवेत्तस्य हि नान्यथा // उक्तयोगमय मंत्रं शृणु यत्नेन वै पुनः॥३४॥ तत्र मंत्रः॥ॐ नमो महापंखेश अमुकस्य अमुकेन सह विद्वेषं कुरुकुरु स्वाहा॥"उक्तयोगानामयं मंत्रः।। अष्टोत्तरशतजपात्सिद्धिः॥३५॥अन्यत्॥धूकपक्षे कुजे बारे यगृहे निखनेन्नरः॥ उच्चाटनं भवेत्तस्य विना मंत्रेण सिध्यति // 36 // उल्लूविष्ठां गृहीत्वा तु सिद्धार्थः सह मानवः // M // 32 // यस्यांगे निक्षिपेच्चूर्ण सद्य उच्चाटनं भवेत् // 37 // काकोलूकस्य पक्षं तु हुत्वा चाष्टाधिकं शतम् // यन्नाम्ना मंत्रयोगेन ह्यवश्योच्चा __१विना बुलाये // 2 काचा टीकरा // -10 For Private And Personal Use Only

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