Book Title: Mantra Maharnav
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsu Gyarmande मं० मा रसज्ञोप्यजिद्धः कस्त्वां सम्यग्वेत्त्यतस्त्वां प्रपद्ये // 5 // नो वेदस्त्वामीश साक्षाद्धि वेद नो वा विष्णुनों विधाताऽखिलस्य // नो योगीन्द्रा / पू. खं०१ ॥३२४ानेन्द्रमुख्याश्च देवा जक्तो वेद त्वामतस्त्वां प्रपद्ये // 6 // नो ते गात्रं नाऽपि जन्मापि नाख्या नो वा रूपं नैव शीलं न देशः॥ इत्थं मि.तं. भूतोपीश्वरस्त्वं त्रिलोक्याः सर्वान् कामान् पूरयेस्तद्भजे त्वाम् // 7 // त्वत्तः सर्व त्वं हि सर्व स्मरारे त्वं गौरीशस्त्वं च नग्नोतिशांतः॥ तरं० 11 त्वं वै वृद्धस्त्वं युवा त्वं च बालस्तत्कि यत्त्वं नास्यतस्त्वां नतोस्मि // 8 // स्तुत्वेति भूमौ निपपात विप्रः स दंडवद्यावदतीव हृष्टः॥ / तावत्स बालोखिलवृद्धवृद्धः प्रोवाच भूदेववरं वृणीहि // 9 // तत उत्थाय हृष्टात्मा मुनिर्विश्वानरः कृती // प्रत्यब्रवीकिमज्ञातं सर्व ज्ञस्य तव प्रभो // 10 // सर्वांतरात्मा भगवाञ्छवः सर्वप्रदो भवान् ॥याच्चां प्रति नियुक्तं मां किमीशो दैन्यकारिणी // 11 // इति श्रुत्वा वचस्तस्य देवो विश्वानरस्य ह // शुचेः शुचिव्रतस्याथ शुचि स्मित्वाबवीच्छिशुः // 12 // बाल उवाच // त्वया शुचे शुचिष्मत्यां योभिलाषः कृतो हृदि // अचिरेणैव कालेन स भविष्यत्यसंशयः // 13 // तव पुत्रत्वमेष्यामि शुचिष्मत्यां महामते // ख्यातो गृहपतिर्नाम्ना शुचिः सर्वामरप्रियः॥ 14 // अभिलाषाष्टकं पुण्यं स्तोत्रमेतत्त्वयरितम् // अब्दं त्रिकालपठनात्कामदं शिव सन्निधौ // 15 // एतत्स्तोत्रस्य पठनं पुत्रपौत्रधनप्रदम् // सर्वशांतिकरं वापि सर्वापत्परिणाशनम् // 16 // स्वर्गापवर्गसंपत्तिकारक नात्र संशयः // प्रातरुत्थाय सुनातो लिंगमायर्च्य शांभवम् // 17 // वर्ष जपन्निदं स्तोत्रमपुत्रः पुत्रवान्भवेत् // वैशाखे कार्तिके| माघे विशेषनियमैर्युतः // 18 // यः पठेत्स्नानसमये लभते सकलं फलम् // कार्तिकस्य तु मासस्य प्रसादादहमव्ययः॥१९॥ तव पुत्रत्व / मेष्यामि यस्त्वन्यस्तत्पठिप्यति // अभिलाषाष्टकमिदं न देयं यस्य कस्यचित् // 20 // गोपनीयं प्रयत्नेन महाबंध्याप्रसूतिरुत् / धा॥२शा *** For Private And Personal Use Only

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