Book Title: Mantra Maharnav
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Page 671
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kasagarsur Gyanmandir www.kabatirth.org टनं भवेत् // 38 // पक्षिराजशिरश्चूर्ण रिपोश्च मस्तके क्षिपेत् // मंत्रयोगेन वे तं स शीघ्रमुच्चाटयेडुबम् // 39 // उल्लूदंष्ट्रां निंबकाष्ठ बिडालीनखचर्मणी // धत्तूराम्बु श्मशानास्थि अरिंगेहे विनिःक्षिपेत् // 10 // उच्चाटनं भवेत्तस्य सिद्धियोग उदाहृतः // उक्तयोग मयं मंत्र शृणु यत्नेन वै पुनः // 41 // तत्र मंत्रः // "ॐ नमो महापंखेश अमुकं सपुत्रबांधवैः सह हनहन दहदह पचपच शीघम चाटयोच्चाटय हुं फट् स्वाहा ठःठः॥” उक्तयोगानामयं मंत्रः॥अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः॥अन्यत् // "उल्लूविष्ठां गृहीत्वा तु विषचर्णसम न्वितम् // यस्यांगे निःक्षिपच्चूर्ण सद्यो याति यमालयम् // 42 // तत्र मंत्रः॥ “ॐ नमो महापंखेश कालरूपाय अमुकं भस्मीकुरुकुरु स्वाहा / / " उक्तयोगानामयं मंत्रः॥ अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः // अन्यत् // "उलूकस्य कपेर्वापि तांबूले यस्य दापयेत् // विष्ठां प्रयत्नत स्तस्य बुद्धिस्तंभः प्रजायते // 43 // “ॐ नमो महापंखेश बुद्धिस्तंभनं कुरुकुरु स्वाहा // " उक्तयोगानामयं मंत्रः // अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः॥ अन्यत् // "उल्लूविष्ठां गृहीत्वा त्वरंडतेलेन पेषयेत् // यस्यांगे निःक्षिपेदि विक्षिप्तो जायते नरः॥४४॥ तत्र मंत्रः॥"ॐ नमो महापंखेश विक्षिप्तं कुरुकुरु स्वाहा॥” उक्तयोगानामयं मंत्रः॥ अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः॥अन्यत् // "उलकहृदयं मांसं मंत्रेण चाई भिमंत्रयेत् // गुग्गुलुं धूपयेत्तस्य शयानस्य हृदि क्षिपेत् ॥४५॥मान संवक्ति वृत्तान्तं यत्किंचिद्वर्तते हृदि // यस्मै कस्मै न दातव्यं सिद्धि। योग उदाहृतः // 46 // तत्र मंत्रः // "ॐ नमो महापंखेश स्वभावस्थायां मनोभिलषितं कथय स्वाहा” उक्तयोगानामयं मंत्रः // अष्टोत्तरशतजपैः सिद्धिः // अन्यत् // आषाढे कृष्णपक्षे च चतुर्दश्यां शुभे दिने // उलूकस्य कपाले तु धतूरं च मृदा सह // 47 // बीजयेपं दत्त्वा च निखनभूमिमंडले // भैरवं च पुनात्वा जलोच्छिष्टेन सिंचयेत् // 48 // दीप प्रज्वालयेन्नित्यं घृतेन सह साधकः॥ 82 For Private And Personal Use Only

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