Book Title: Mantra Maharnav
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 673
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अथ संतानोपायः // अरुण उवाच // वृथा धनं गृहं धान्यमपुत्रजन्म निष्फलम् // ममोपरि दयां कृत्वा प्रायश्चित्तं तबदस्व मे // 1 // श्रीसूर्य उवाच // विरक्तापहारी च सोनपत्यः प्रजायते // तेन कार्य विशुद्ध्यर्थ महारुद्रजपादिकम् // 2 // ती र्थयात्रा प्रकर्तव्या रेवातापीसमुद्भवा // एकेनापि हि वस्त्रेण दंपतीस्नानमुत्तमम् // 3 // श्रवणं हरिवंशस्य ब्राह्मणोद्वाहनं खग // अष्टोन शतान विप्रान् मिष्टान्नेन तु तर्पयेत् // 4 // ईशान इति मंत्रेण जपं कुयात्सहस्रकम् // दशांशहोमसंयुक्तं कुर्याच्च विधिवत्ततः॥५॥ लापनेस्तु लक्षसंख्याकैः शिवं संपूज्य यत्नतः // स्वर्णधेनुः प्रदातव्या सवत्सा सुरभिस्तथा // 6 // घृतकुंभ वैनतेय ब्राह्मणाय निवेदयेत् // एवं कृतेन वै तस्य ह्यपत्यं जायते सुता // 7 // ( गारुडेपि ) हरिवंशकथां श्रुत्वा शतचण्डीविधानतः // भक्त्या श्रीशिवमाराध्य पुत्रम सादयेत्सुधीः॥८॥ (महार्णवेपि ) सौवर्ण बालकं कृत्वा दद्यादोलासमन्वितम् // अथवा वृष दद्याविप्रोद्वाहनमेव वा // महारुद्र जपो वापि लक्षाः शिवार्चनम् // 9 // अथ मृतपुत्रत्वहरोपायः // बालघाती च पुरुषो मृतवत्सः प्रजायते // ब्राह्मणाद्वाहनं चैव कर्तव्यं तेन शुद्धयति // 10 // श्रवणं हरिवंशस्य कर्तव्यं च यथाविधि // महारुद्रजपं चैव कारयेच्च यथाविधि // 11 // जुहुयाच्च शतांशेन दूर्वा आज्यपरिप्लुताः // एकादश स्वर्णनिष्काः प्रदातव्या च दक्षिणा // 12 // एकादश पशूश्चैव दद्याद्वित्तानुसारतः // अन्ये योपि यथाशक्ति द्विजेन्यो दक्षिणां दिशेत्॥१३॥नापयेद्दम्पती पश्चान्मंत्रैवरुणदेवतैः॥आचार्याय प्रदेयानि वस्त्रालंकरणानि च॥१४॥ तत्रादौ हारिवंशश्रवणविधानम् // ( कौस्तुभे ) दंपत्योरनुकूले सुदिने कतनित्यक्रियः देवालयादिपुण्यस्थले स्वगृहे वा स्वासने प्राङ्मुख उपविश्य आचम्य प्राणानायम्य देशकालौ स्मृत्वा अनेकजन्मार्जितानपत्यत्वमृतापत्यत्वादिनिदानभूतबालघातनिक्षेपहरण विप्ररत्नापहरणा For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682