Book Title: Mantra Maharnav
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Page 668
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir .ख.१ मि०० तर• 11 आधयो हृदये विद्दे पदोः पादव्यथा भवेत् // 31 // " अन्यत् / / “दारुणा कुक्कुटं कृत्वा तत्रास्य स्थापयेदमून् // तं स्पृष्ट्वा पूर्व १३१९वद्ध्यात्या जपेद्रविसहस्रकम् // 32 // उपचारैः समायर्य छादयेइक्तवाससा // रथे संस्थाप्य तं देवं दिक्षु योधान्निधापयेत्॥३३॥ चतुरो वर्मसंवीतानश्वारूढानुदायुधान् / / तत्संयुतो रणे गच्छेन्जेतुं बलवतो रिपून् // 34 // वीराख्यं कुक्कुटं दृष्ट्रा पलायंते रणेऽरयः॥ भीता दश दिशः सर्व हर्यक्षं करिणो यथा // 35 // " अन्यत् // “ताम्रचूडस्य मंत्रेण मोदकायभिमंत्रितम् // यस्मै ददीन नक्षाय स वशो मंत्रिणो भवेत् // 36 // " अन्यत् // "अष्टोत्तरशतं जप्त्वा रोचनाचन्दनादिभिः // विदधनि लकं भाले दर्शनाशयेजनान् // 37 // इति श्रीचरणायुधस्य ताम्रचूडकुक्कुटस्य वा मंत्रप्रयोगः // अथ पक्षि राजबूकतंत्रप्रारंभः // चतुर्दश्याममायां वा रविवारो भवेद्यदि // गृहीत्वा पक्षिराजं चोदरं तस्य विदार्य च // 1 // विष्ठा त स्य बहिष्कृत्य नमो भूत्वा श्मशान के // प्रज्वाल्य नृकपाले तु तत्पात्रोतकज्जलम् // 2 // गुग्गुलं धूपयेत्तस्य मंत्रेण चाभिमंत्रयेत् // अष्टोनरशतं वारं तदा मिद्धो भवेटुवम् // 3 // कज्जलं तेन संग्राह्य तात्रयंत्रण वेष्टिता॥गुटिका मुखमध्यस्था ख्याताऽदृश्यत्वकारिणी॥ // 4 // कजलेनाअयने। तदा पश्यति देवताम् // भूतप्रेतपिशाचादियज्ञैश्च योगिनीः सह // 5 // नेत्रे प्रक्षाल्य गोमूत्रर्मानुषी दृक् प्रजायते // योगद्दयेन कथिता मंत्रस्यैकं वदामि ते // 6 // तत्र मंत्रः॥ "ॐ कुरुकुरु स्वाहा मेहमरीअनेनधनेयः पाठेश्वरीनमः॥" उक्तयोगानामयं मंत्रः // "उलूकमजातैलेन कजलं पारयेन्नरः / तेनांजनेन वै कृत्वा अदृश्यं भवति ध्रुवम् // 7 // कनेत्रं गृहीत्वा तु ? चन्दनादिभिरित्यादिशब्दाकुंकुमकस्तूरीकर्पूरगजमदा प्रामाः / / // 3 For Private And Personal use only

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