Book Title: Mantra Maharnav
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Page 666
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir म.म. मि.तं. कथ्यो न दुर्मतौ // 11 // " अन्यत् // "मुक्तकेश उदावको जपेद्धानुसहस्रकम् // प्रत्यहं वसुघस्रांतं यमुद्दिश्याधियामिनि // 40 ख०१ तमाकर्षति दूरस्थमपि किं निकटस्थितम् // 12 // " अन्यत् // “जातीफलैलाः संचूर्ण्य कर्पूरं मध्यतः क्षिपेत् // अभिमंत्र्यासाह सिंदूररजसा युतम् // 13 // उष्णीकत्याग्नितापेन क्लेदयेदाङ्गपाथसा // स्थापयेदायसे पात्रे तत्पृष्ठं स्तंभितो भवेत् // 14 // " अन्यत् // तरं० 11 कर्मारसदनादह्निमानीयायसभाजने // स्थापयित्वेंधयेत्काष्ठैः करवीरसमुद्भवः // 15 // जुहुयानत्र धत्तूरबीजानि शतसंख्यया // सिद्धार्थ / तैललिप्तानि विषकर्णयुतानि च // 16 // सप्ताह एवं रुत्वारिं स्थानादुच्चाटयेध्रुवम् // पक्षं देशांतरगतं मासं संप्रापयेन्मृतिम्॥१७॥" अन्यत् ॥"तालपत्रं नराकारं कृत्वात्र स्थापयेदसून् // जपेदष्टसहस्र तत्तीक्ष्णतेलविलेपितम् // 18 // तस्य खंडानि पंचाशत् कृत्वा पि छातृवनोत्थिते // उन्मत्ततरुसंदीते जुहुयाज्जातवेदसि॥१९॥एवं प्रकर्वखिदिनं मारयेन्मोहयेदरिम् ॥"अन्यत् // “साध्यक्षतरुकाष्ठेन कृत्वा पुत्तलिकांशुभाम् // तस्यामसून्प्रतिष्ठाप्य सहस्रं प्रजपेन्मनुम् // 20 // चिताकाष्ठस्य कीलेन तां स्पृष्टा पितृकानने // छिंद्यायदंगं शस्त्रेण S 1 वसुघलांतमष्टदिनपर्यंतम् // 2 अधियामिनि रात्रौ // 3 गांगयाथः गंगाजळम् // 4 आयसे पाने लोहपात्रे // 5 कारेति लोहकारगृहादहिमा नीय लोहपाचे संस्थाप्य करवीरकाष्ठः संदीप्य तत्र सर्षपतलाक्तानि विषचूर्णयुतानि धत्तूरवीजानि शतं शतं सप्ताई हुत्वा शत्रुमुच्चाटयेत् / एवं पक्ष कृत्वा देशांतरं नयेत् / मासं कृत्वा मारयेत् // 6 तालेति नराकारं तालपत्रं कृत्वा रात्रौ शत्रोः प्राणान् संस्थाप्प भल्लातकतैलेन विलिप्य अष्टाधिकं सहस्रमभिमंत्र्य तस्य पंचाशत्खंडानि कृत्वा धत्तरकाष्ठदीप्ते श्मशानाग्नी त्रिदिन हुत्वारिं मारयेन्मोहयेच्च // 7 साध्येति नक्षत्रवृक्षा उक्ताः तेन शनुपुत्तलिकां कृत्वा रात्रौ शवोः प्राणा| संस्थाप्प सहस्रमभिमंत्र्य चिताकाष्ठकीलेन तां पुतली स्पृष्ट्वा सहस्र जपेत् / तस्याः प्रतिमायाः श्मशाने यदंग शस्त्रेण छिंद्यात्तदंगं तस्य शत्रोनश्यति // 318 // For Private And Personal Use Only

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