Book Title: Mantra Maharnav
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabati.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir निर्विष 2 विषमप्यमृतं चाहारसदृशरूपमिदं ज्ञापयामि स्वाहा” इति मालामंत्रः // अस्य विधानम् // अनेन गरुडमंत्रप्रसादेन मंत्री गरुडो भूत्वाभिमंत्रितं स्थावरविषं भक्षितमप्यमृतं भवति किममृतान्नापादिकमिति // " अथ गरुडस्तवः // (तंत्रसारे ) / सुपर्ण वैनतेयं / च नागारिं नागभीषणम् // जेतात्रकविषारिं च अजितं विश्वरूपिणम् // 1 // गरुत्मतं खगश्रेष्ठं ताय कश्यपनंदनम् // द्वादशैतानि / नामानि गरुडस्य महात्मनः // 2 // यः पठेत्प्रातरुत्थाय स्थाने वा शयनेपि वा // विषं नाक्रमते तस्य न च हिंसति हिंसकाः // 3 // संग्रामे व्यवहारे च विजयस्तस्य जायते // बंधनान्मुक्तिमामोति यात्रायां सिद्धिरेव च // 4 // इति गरुडस्तवः / (हारीतः ) HI" नर्मदायै नमः प्रातर्नर्मदायै नमो निशि // नमोस्तु नर्मदे तुज्यं त्राहि मां विषसर्पतः // 1 // सपिसर्प भद्रं ते दूरं गच्छ महाविष // le जन्मेजयस्य यज्ञान्ते आस्तीकवचनं स्मर॥२॥आस्तीकवचनं श्रुत्वा यः सर्पो न निवर्तते // शतधा भिद्यते मूर्ध्नि शिंशवृक्षफलं यथा // 3 // Toll एतान्गरुडमंत्रांस्तु निशायां पठते यदि // मुच्यते सर्वबाधात्यो नात्र कार्या विचरणा // 4 // " (गोभिलः) " अग स्तिधिवश्चैव मुचुकुन्दो महाबलः // कपिलो मुनिरास्तीकः पंचैते सुखशायिनः // 1 // " इति गरुडमंत्रप्रयोगः // MIn अथ चरणायुधमंत्रप्रयोगः॥( मंत्रमहोदधौ ) चरणायुधमंत्रस्य विधानमभिधीयते // मंत्री यविधिना कृत्वा साधयेत्स्वमनोरथान्॥ मंत्रो यथा “आं यूं कोलियूं कोलि ह्रीं वां ह्रीं यू कोलियूकोलि चुवाकों” इत्यष्टादशाक्षरो मंत्रः // अस्य विधानम् // प्रातः कृत्यक्रिया तारादिबलान्विते सुमुहूर्ते शैलाये सरितस्तटे वा वृषशून्ये शंकरमंदिरे वा स्वासने पश्चिमाभिमुखः स्थिलाचन्य प्राणानायन्य देशकालौ संकीर्त्य मम चरणायुधामुकमंत्रसिद्धयर्थ चरणायुधप्रसन्नार्थ लक्षजपस्तत्तदशांशहोमतर्पणमार्जनब्राह्मणभोजनरूपपुरश्चरणमहं करिष्ये / For Private And Personal Use Only

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