Book Title: Mantra Maharnav
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Page 658
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू० ख०१ // 31 // मं• म. विनियोगाय नमः / सोङ्गे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ ज्वलज्वल महामते स्वाहा हृदये // 1 // ॐ गरुडचूडान | न स्वाहा शिरसि // 2 // ॐ गरुडशिखे स्वाहा शिखायै वषट् // 3 // ॐ गरुड प्रभंजयप्रभंजय प्रोदयप्रोदय त्रासयत्रासय विमर्द यविमर्दय स्वाहा कवचाय हुम् // 4 // ॐ उग्ररूपधर सर्वविषहर भीषयभीषय सर्व दहदह भस्मीकुरु कुरु स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट् // // 5 // ॐ अप्रतिहतबलाप्रतिहतशासन हुँ फट् स्वाहा अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादिषडगन्यासः॥ ॐ ज्वल 2 महामते स्वाहा अंगु पष्ठयोः॥१॥ ॐ गरुडचूडानने स्वाहा तर्जन्योः // 2 // ॐ गरुडशिखे स्वाहा मध्यमयोः // 3 // ॐ गरुडप्रजय 2 प्रभेदय 2] विमर्दय 2 स्वाहा अनामिकयोः॥४॥ॐ उग्ररूपधर सर्वविषहर भीषय 2 सर्वे दह 2 जस्मी कुरु कुरु स्वाहा कनिष्ठयोः॥५॥ ॐ अप्रति हतबलाप्रतिहतशासन हुं फट् / करतलकरपृष्ठयोः // 6 // इति करन्यासः // ॐ शिं नमः पादयोः // 1 // ॐ पं नमः कट्योः // 2 // ॐ ॐ नमः हृदि // 3 // ॐ स्वां नमः बक्के // 4 // ॐ हां नमः मूर्ध्नि // 5 // इति मंत्रवर्णन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्या येत् // अथ ध्यानम् // तप्तस्वर्णनिभं फणीन्द्रनिकरैः कृतांगभूपं प्रभुं स्मर्तृणां शमयंतमुग्रमखिलं नृणां विषं तत्क्षणात् // चंच्चयपच | लद्भुजंगमभयं पायबोर्वरं वित्रतं पक्षोच्चारितसामगीतममलं श्रीपक्षिराजं भजे // 1 // इति ध्यात्वा स्वर्णादिनिर्मित यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपात्रे निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारांजलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण संशोप्य बाह्यरेफद्वयहुंकारमध्यस्थक्षकारविंद्वततार्थ्यबीजमुक्तकर्णि के स्वरद्वंद्वात्मकं केसरेषु कचटतपयशलाष्टवर्गयुक्ताष्टदले मातृकापद्मपीठे ॐ पक्षिराजाय स्वाहा इति मंत्रणासनं दत्त्वा पीठमध्ये संस्थाप्य पुनात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पायादिपुष्पान्तरुपचारैः संपूज्य देवाज्ञया आवरणपूजां कुर्यात् // तद्यथा-पुष्पांजलिमादाय संविन्मयः परो // 31 // For Private And Personal Use Only

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