Book Title: Manik Vilas
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(३) गट पापिनी यारयधू लखि वुधजन भज्या. रे । कुमति भाव गणिका तजि भजि निज परणति हितकारी । इन सातो० ॥ [चोरी] करत तस्करी सासु हृदय दुर्ध्यान दहनिजारे । पीटे धनी विलोकि लोक निर्दय मिलि अतिमारे ॥ प्रजा पाल करि कोप तोप शूरी धरि संहारे । लखि वंदीगृह प्र. गट त्रास मरि नीची गति धारे ॥ पर की चाह भाव चोरी तजि ग्रह निजनिधि प्या. री ॥ इन सातो० ॥५॥[शिकार ] निरपराध निर्वल भय आतुर खटकत भगिजा. हीं। ऐसे दीन मृगादिक प्रानी निवसत बन माहीं ॥ तिन्हें अखेटो रसन लंपटी घातत हरपाई । जीय घात करि नर्कजात जिन आगम फरमाई ॥ निर्दय भाव शिकार त्यागि करि जीवन सों यारो। इन

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