Book Title: Manik Vilas
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
कारन और न बनत उपावो । मानिकचंद यही अनुक्रम सो भव समुद्र तरि जावो ॥ भवि०६॥
५२ पद--राग भैरों ॥ परमारथ पथ को जे ध्यावें ते जगधन्य कहावें ॥ टेक ॥ मिथ्यातम निरवारि धारि दुग सम्यक तत्व जु पावे। सम्यकज्ञान प्रधान पवन बल भ्रम बादर विघटावे ॥ पर० १॥ देव शास्त्र गुरु भक्ति करत पैशुभ फल को नहिं चावे । भागत भोग उदास रहत नित चित बैराग वढ़ावे पर०२॥ सकल पदारथ में निर्ममता शाम्यभाव उर भावे। जिन सिद्वान्त परम उपवन में मन मर्कट बिरमावे ॥ पर० ३॥ नय निश्चय व्यहार दहनि करि निज परतत्व दृढावे । ज्ञानानंद सुधारस पीकर पूरब कर्म भरावैपर०४॥ सर्व गव्यतेभिन्न आप को आष.

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98