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( ८४ ) जनमत दश केवल उपजे चउदश सुर कृत थारी हो । ऐसे श्री जिनवर लखि मानिक मन वच तन बलिहारी हो ॥ जिन० १ ॥
१०१ पद - दादरा ॥
श्री जिन हो सुनों मेरी विनती ॥टेक॥ दुष्ट कर्म ने भव भव माहीं दुख दोना ही हमें अनगिन्ती ॥ श्री० १ ॥ अंजन आदि अधम अघ भारे तारे हो भविक अनगिनती ॥ श्री०२ ॥ मानिक चरण शरण गहि लीनो दीजे हो अचलपुर वस्ती || श्री ०३ ॥
१०२ पट - दुमरी जिन्ता ॥
हुइआ जे बलिहारो हो श्री जिन थापे ॥ हुइ० ॥टेक॥ वीतराग विज्ञान भावमय वर अनंत गुण धारी हो । हुइ०१ ॥ नाशा अग्र दृष्टि को धारें वर विरागता कारी हो || हुइ० २ || अनुभब रस झलकत मुख पुलिकत सुर नर मुनि मन हारी हो ॥हुइ०