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(५) ॥३॥ निरसन दृग हरपन हिय मानिक मन वच धोक हमारी हो । हुइ०१॥
१० पद-दादग। आज मेरे नेना सफल भये लग्यि छवि श्री जिन की ॥टेक॥ बीनराग मुद्रा निरखत ही मिथ्या भाय नये ॥ लखि १ ॥ अब मल दूरि करन को पावन लायक दान दये ॥ लडि०२॥ निज हिन कारण छ. वि लखि मानिक मन बच काय नये ॥ लांख० ॥६॥
१४ पद-दादग। धनि सर धानी जन जिन पायी पथ निरवान ।। टेक।। मिथ्या निमिर फटी प्र. गटी घट अंतर समकित भान । नि०१ ।। माह मई नजि शयन दगा हे जाग्रन दशा महान । सर्व तत्व को मरम लखी तिन अनाचीक भगवान ॥ धनि०२॥ निजको