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वैराग्य जलधि विस्तारी । नत्र छोड़ि ज गत दुखकारी । भये पंच महाव्रत धारी जी ॥ जिन० ६ ॥ त्रिनवे उग्रमेन कुमारी | हमरी कहा चूक निहारी। प्रभु शिव रमनो चिन भारी जी ॥ जिन० ॥ मैं तो बारि ही बार पुकारी। चूत भव जल संधारी । मानिक को करहि नारी जी ॥ जिन॥
१२ पद-राग हाथी या में।"
एजी म्हाने नादि दीजो श्री जिनदेव मैं तो थारो शरण दियो जी ॥ टेक ॥ वर हित कारण विधि गण जारन तारन न रन न्वमेव ॥ थागे० १ ॥ बारी बानी - मृत समानो वरपन ज्यो वन देव ॥ वारीष् मानिक इमि देखि शरण लिया है उरण की सेव ॥ थारो० ३ ॥
पद-रान
जे नरध्यावत जिन गुण माला ॥ जेनर