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(3) भानुको प्रभाहरी । देखो०१॥ घाति कम नाशि करिअनंत ज्ञान मानता। जाम लो. कालोक के स्वभाव को प्रकाशना । इप्टी अनिष्ट कर्म भाव को विनामती । निज स्वभाव मांहिं बो ना लीन रहे शाश्वना । अनुभवन करने मुझी मेरी दशा नजरपरी ॥ देखो०२॥ वीनराग नाम महागग भ क्ति को करें। जिन के जो अभक्तने नि. गोद के मांही परें । इन्द्र औ फणेन्द्र चन्द्र चरण तर मस्तक धरें। जाकी ध्वनि मुनि के पग्बादी कोटि घर हरे॥ मानिक कब ऐसी दशा होय सो धनि २ घरो॥देखी।
१२ पा-गी, मगर आज जिनवर दरशन पावे ॥टेक॥ भल अनादी तुग्न नमानी निज आतम दरशाये ॥ आज० १॥ पर की चाह महा. दन दाहन-सोती अब मीटिंग नहिं जा