Book Title: Manik Vilas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 90
________________ (९) रेयरे ॥ महा० २ ॥ मानिक मदत करहु करुणा कर निश्चल पट निबसेयरे महा। ११३ पद-सोग माफी ॥ सखीरी मैं तो जाउंगी गिरि की ओरो प्रभु ही से ध्यान लगी जिय में ॥ टेक ॥ विषय विकार झालसी लागे उर वैराग जगोरी ॥ मैं० १॥ अब गृह में कछ काम नहीं कोउ लाख यतनवा करारी ॥ मैं०२॥ मानिक प्रभु पद उर धरि रजमति प्रभु ही को शरण गहोरी॥ मैं०३॥ ११४ पद-रेगना मग का ॥ इश्क अब मुझको मेरे निज दर्श का हुआ सही। निश्ल ये जिनगज तेरो सेव में बुधि पर्नई ॥टेक ॥ भव में भ्रमते अब तलक तुम भेद में पाया नहीं। काट टन्धि सबल परस पद आज मैं निज निधि राई ॥ इश्क० १॥ विश्वदर्शी विश्व व्यापी पर

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