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- मत निज भाव में । ज्यों महीपे चन्द्रिका सुमही स्वरूप नहीं भई ॥ इश्क०२ ॥ शिव मई शिवमार्ग उपदेशन कुशल तुम हो प्रभ भव्यजन भव सिन्धुतें बहुतारि कोने अप मई | इश्क० ३ ॥ मैं दुखी चिरकाल से पर चाह भ्रम आतिश दहा । देखि श्री जिन चन्द्र भ्रम नशि शांतिता प्रगटी नई ॥ इश्क० ॥ ४ ॥ भक्ति भव भव रहो मानिक के हृदय तत्र तक प्रभू । जब तलक न विभात्र नशि सुख होय विश्वातम मई ॥ इश्क० ५ ॥
११५ पद -गजल तथा सूर मल्हार ॥
देखो भवि जिनवर छवो यह शांति सुरससूं भरी ॥ टेक ॥ नासिकाग्र दृष्टि महा शुद्धसु आसन घरें । आनन अरविन्द हंसे माना वयन उच्चरें ॥ ज्ञान वर विराग हेत देखते कल मल हरें । भव्यजन जलज प्रकाश कों सुरविप्रभा धरें ॥ जासुप्रभा देखि कोटि
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