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(७) त्यारथ चरचावर चोवा मलि २ अंगल. गावे । शांति सुधारस रंग राचि करि राग गुलाल उड़ावे । जवे०२॥ जिन आगम ध्वनि अमल पान करि मन वच तन छकि जावे । सुमति नारि जुत हरखि हरखि केश्री जिन के गुण गावे ॥ ज०३॥जि. नवर गुण वर निज स्वरूप को एक रूप दरशाव। निरमल सरधा धर्म मिठाई ग्रहत न नेक अघावे ॥ ज०४॥ त्यागि ध्यान करते जब निज में निज विरमावे । मानिक यों वड़ भाग खेलि फिर आवाग. मन मिटावे ॥ ज०५॥
१०७ पद-दमरी जिना झगोटी की ॥ लखि छवि वीतगग जिन की आज म्हारे आनंद उर न समावे ॥टेक॥ मिथ्या तम हर अनुपम दिनकर स्वपर भेद दरशावे॥ आज० १॥ वीतराग मुद्रा निरख.