Book Title: Manik Vilas
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(६) गहो मानिक सन बच नन अग कीजे निर चरी दुनिय"
पद- Rar ॥ तेरी मति हीनरे जिय तेरी मनि होन ॥ टेक ॥ निज धन तेगे कर्म शत्रु ने अ. नचीनी कर दीन । तान नोहि तुम्न नाही भयो जगत में दोन ॥ रे जिम०१॥ परही को जाचन परहीराचा पर मय आपेशी कोन । तूं गुबमय यों दुखी होन ज्यों जल विच प्यासी नीन ॥ रे जिय०२॥ करि पीरुप मम मात्रछाडि लखि सम्यक रत्न सुतीन । गुरु वचन सरधा घरि मानिक निजगुण होउलव लोन रेजिय या
परदादा हृदय जिन मृत्ति रही ये समाय-एजी और कळू न मुहावै मन में । टेक ॥ नि.
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