Book Title: Manik Vilas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 76
________________ (99) ___८८ पद-राग पिग ॥ अचिरज लागे हो भारी लखि नहिमा श्रीजिन थारी ॥ टेका वीतराग जिन नाम धरायो प्रचुर राग करतारी ॥ अचि० १॥ निज त्रिय त्यागि बनेवन में फिर क्या परणी शिवनारी ॥ अचि०२॥ पग्न मानि रन भीनी मुरनिविधि गम क्यों नयकारी। अचि०३॥ अनुपम बर अनसुन महिमा पर मानिक नित बलिहारी ॥ अचि०४ ॥ ____ पद-गला नागer | छयो रखते मुझे निज भाव नजर आ. ता है। जैसे प्रति वित्रको जुआयना झाल काता है "टेका विश्व के तन्व मबी निज गुण पर्यय समेत ज्ञान अनि स्वच्छ में इक वार समाजाता है ॥ १॥ भिन्न परभाव में सदा स्वभाव ने ही मगन यही अनिशय नही

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