Book Title: Manik Vilas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 77
________________ (E) परभाव को सताता है॥२॥ शांति रस मांहिं मगन है सदा आनंद मई मेरे भ्रम दाघ को छिन मांहिं वो वुझाता है ॥३॥ राग विन नाम प्रभू मानिक राग करोहरो विधि जाल सदा होवे महा साता है ॥ ४ ॥ ___९० पद-ठुमरी सम्माच ॥ __ सखीरी मैं तो जाउंगी नेमि प्रभु पास ॥टेक॥ जग बिकार दव झालसी लागे उर वैराग्य प्रकाश ॥ सखी०१॥ घर कुटुंव से कोज नहीं हैं लागो दरशन की आश ॥ सखी० २॥ मानिक राजुल प्रभु पर जाचति दीजे म्हाने अविचल वास ॥ सखी०३॥ ९ पद-ठुमरी ॥ __ मैं भी चलो थारे साथ नेमि जी सनि. यो टेर हमारी हो ॥ टेकजग नासो विन शरण भवोदधि में वूड़त मझधारी हो। मैं इक भिन्न मलिन तन ने मेरी निरमल

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