Book Title: Manik Vilas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 53
________________ ( ५४ ) ॥ आत०॥ जाको पद जग पूज्य जगोत्तम जामें जग झलकाई। स्वपद विसारि राचि पर पद में दुखिया होत अघाई॥आत०३॥ जब अपनो वल आप सम्हारे डारे विकल पताई । मानिक तब शिब महल में वासी सुख अनंत बिलसाई ॥ आत०४॥ ५६ पद-राग दादरा जिला ॥ तन धनरे दगा दिशे जोय ॥ टेक ॥स. न्ध्या समय अरुण अंबर ज्यों चपला च. मकि पलाय रे ॥ तन०१॥ सस्यक दृग करि निरखि सयाने यह पुदगल परयाय॥तन०२॥ पूरब सुकृत करि यह ठहरत यतन करें न रहाय रे ॥ तन०३॥ जाके हेत करत अघ भाई लहे कुमति दुखदाय ॥ तन०४॥ धन सुक्षेत्र विन तन तप करि ज्यों होवे सुर शिवराय ॥ तन०५॥ छिन उपजत छिन छिन में विनसत जाको यही सुभाय॥तन०६॥

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