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माहिं निवसाये। ज्यों पंकज निन रहन पंक में पै अलिप्त विकमावे ॥ पर० ५ ॥या भूधि मंडल मांहिं सुतेजन जीवन मुक्तिकहावें। मानिक निन के गुण चितारिके हाथ जोरि शिर नावें ॥ पर०६ ॥
५३ पद-दादरा॥ जिन मत परखारे भाई । जाके परखत भ्रम मिटि जाई ॥ टेक । नय प्रमाण निक्षेप न्याय करि परखतभ्रम मिटिजाई॥१॥ विन परखें जोवादि तत्व को भेदन परत दिखाई। यथा अंध सिंधुर गहि झगड़त वस्तु स्वरूप न पाई २॥ काल दीप तेंजिन मत मांहीं नाना भेप बनाई। ज्ञान विराग रूप तजि जिन मत विपय कपाय बढ़ाई ॥३॥ पचेन्द्री सेनी आरज हे सीख लई चतुराई । जिन मत परखन को हैं मृरख