Book Title: Manik Vilas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 26
________________ (२) चिदानंद निहारा ॥ जिन० ॥ ५॥ शुक्लानि को प्रजालिकर्म कानन जारा।निन मुनिकों देखि मानिक नमस्कार उचारा॥ जिन०६॥ २५ पद-राग महार तथा झंझोटी ॥ अब हम जैन घरम धन पाया । चाह रही न कछु मन में जब कर चिंतामणि आया ॥ टेक ॥ चिरतें रंक भयो भ्रमकरि नाना गति में भटकाया । सुगुरु दयाल नसाइ महाभ्रम निज धन निकट दिखाया ॥ अव० १॥ रत्नत्रय मय है अटूट साधर. मिन ये पर खाया। हृदय कोप में राखि निरंतर दिन प्रति चित में भाया अव०२॥ कुगुरादिक बहु फिरत लुटेरे तिन का संग छुट काया । इन्द्रिय चपल चोर ढिंग बैठे तिन का यत्न करायो । अव०३॥या धन रक्षक देव सुगुरु श्रुत की प्रतीति उरल्या

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