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(२८) या। सारथवाह भये शिवपुर के तिनसं नेह लगाया ॥ अव०४॥ जिन पाया तिन सुगुरु सुध्याया तिन का यश जग गाया। या धन को विलसे जे मानिक तिन अनंत सुख पाया ॥ अव० ५ ।
२६ पद-गग दीपचदी तथा होरी मोरठ में ॥
जबे कोऊ जाविधि मन को लगावे। तब परमातम पद पावे ॥ टेक ॥ प्रथम सप्रतत्वनि की श्रद्धा धरतन संयम लावे। सम्यक ज्ञान प्रधान पवन वल भ्रम बादर वि.
घटावे ॥ जवे० १॥ वर चरित्र निज में नि. __ ज थिर करि विषय भोग बिरचावे। एक
देश वा सकल देश धरि शिवपुर पथिक कहावे ॥ ज० २॥ द्रव्य कर्म नो कर्मभिन करि रागादिक बिनसावे। इष्ट अनिष्ठ बुद्धि तजि पर में शुद्धातम को ध्यावे ॥ ज०३॥