Book Title: Manik Vilas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 45
________________ (४६ ) साधत जीवत काल अंत विन प्रानी भव्यता '४७ पद-राग टप्पो मंझोटी को। एरे तेंने नाहक जन्म गमायो रे ॥टेका गर्भवास नवमास सहे दुख सुनता नाहिं लजायोरे ॥ एरे०१॥ बालापन ख्यालनिमें खोयो रुदन करत दुःख पायोरे । तरुणपने विषयनि वश निशि दिन तरुणी सों चित लायोरे ।। एरे० २॥ काम क्रोध छल लोभ मोह करि बहु विधि पाप कमायो रे। कै कुसंग लगि कुगुरुनि तें पगिनिज हित नाहिं सुहायो रे॥ एरे० ३॥ गृह कारण वि. रधापन में तृष्णा वश हे विललायोरे। मानिक सुगुरु सीख अजहूं भजि होय ब. हरि पछितायो रे ॥ एरे०४॥ ४-पद-राग जोगिया ॥ यम आनि कंठ जब घेरा जीव तब कोई नहीं रक्षक तेरा ॥ टेक॥ सब कुटुंब स्वारथ

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