Book Title: Manik Vilas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ (२) विन धर्म कहो निज शांति भाव रसधार । सप्ततत्व पद द्रव्य पदारय मुख्य और उपचार ॥ अव०३॥हित अरु अहित सुतिन कारण विच हेयाय विचार। मानिक या विन मुक्ति नहीं है सब संसार असार ॥ अब०१॥ ___ २२ पद-लायनी ( मप्तध्यान की ) जूवा मांस मद वेश्या चोरी खेटक पर नारी । इन सातो विसननकी हकीकत कहूं • न्यारी न्यारो ॥ टेक ॥ [जूवा सकल पाप को बाप आपदा को कारण जानो। कलह खेन दुर्यश के हेत दारिद को ठिकानी ॥सत्य रूप निजगुण हो सो ततछिनहीं पलानो। रुद्र ध्यान को वास जासु नहिं देखन वधिवानो॥ शुभ अरु अशुभ भाव जूवा तजि भजि वृष सुखकारो। इन सातो० ॥१॥ [मांस] जंगम जोव को नाश होत तव मांस

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98