Book Title: Mandan Granth Sangraha Part 01
Author(s): Mandan Mantri
Publisher: Laherchand Bhogilal Shah

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) काव्यमनोहरम्. कालिन्दीजलकल्लोलशोभासन्ततिधारिणी ॥ ३५ ॥ भ्रूमङ्गो रचितस्तस्याः वेधसा स तु दृश्यते । शरासनं हि तद्वक्त्रे निक्षितं स्वभुवेति किम् ? ॥ ३६ ॥॥ आकर्णव्यापिनी नेत्रे नीलोत्पलदलामले । चकितणीसुदृष्ट्य भ्राजेते मदनायुधे ॥ ३७॥ रदनाः खलु भान्त्यस्याः पक्वदाडिमबीजभाः। हास्यपर्यस्तरुचयो लघवः समपनायः ॥ ३८ ॥ ओष्ठाघरौ विभासेते प्रवालविशदौ स्त्रियाः। परिचुम्बनवेलायां प्रियदन्तक्षताङ्कितौ ॥ ३९ ॥ द्विजराजगुणोपेतं मुखं तस्या विराजते । सुधाधरं रुचा स्निग्धं पत्रिकाएं सुशीतलम् ॥४०॥ आजानुयायिनौ वाहू प्रियालिङ्गनतत्परौ । वेधसा तस्कृतौ यत्नात्सुधापूर्णघटाविव ॥ ४१ ॥ मृगेन्द्रमध्या सा भाति कणितामलमेखला। अङ्गना केलिसु प्रीतिनिम्ननाभिः कृशोदरी ॥ ४२ ॥ तस्या उरू विभासेते सरलौ करभाकृती। कनकोत्तमवर्णाभौ रम्भास्तम्भानुकारिणौ ॥ ४३ ॥ राजमाने रुवा जले स्थूले नैव तथा कुशे । तस्याः सुन्दरलीलायाः कोमले वर्तुलाश्चिते ॥४४॥ रक्तोत्पलनिभावशी राजेते योषितः शुभौ । यावकोद्भासितौ रम्यौ विस्फूजन्नखरच्छवी ॥ ४५ ॥ लावण्यमधिकं तस्या वर्णितुं नैव शक्यते । यथापति मया तद्विवणितं साधु धीमताम् ॥ ४६ ॥ शृङ्गारो विविधस्तरमा मद्यते निखिलो मया । सर्वलावण्यसशेष गुणबाहुल्यसन्मतेः ॥ ४७ ॥ अलकाली द्विधा तस्याः सख्या भारया रुता । For Private and Personal Use Only

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