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आर्जव १०३
चारों ओर से देख सकते हैं। भगवान् महावीर ने कहा, 'निर्मलता उसे प्राप्त होती है, जो ऋजु होता है।' कपटी मनुष्य का मन कभी निर्मल नहीं होता। बच्चे का मन सरल होता है, इसलिए उसके प्रति सबका स्नेह होता है। हम जैसे-जैसे बड़े बनते हैं, समझदार बनते हैं, वैसे-वैसे हमारे मन पर आवरण आते रहते हैं। आवरण अज्ञान का होता है। आवरण सन्देह का होता है। आवरण माया का होता है। हम दूसरे व्यक्ति को जानने का यत्न नहीं करते, इसलिए हमारा मन उसके प्रति सरल नहीं होता। हम दूसरे व्यक्ति के प्रति विश्वास नहीं करते, इसलिए उसके प्रति हमारा मन सरल नहीं होता। हम दूसरे व्यक्ति से अनुचित लाभ उठाना चाहते हैं, इसलिए उसके प्रति हमारा मन सरल नहीं होता। यदि इस दुनिया में अज्ञान, सन्देह और कपट नहीं होता तो मनुष्य मनुष्य के बीच प्रेम की धार बहती। मनुष्य मनुष्य के बीच कोई दूरी नहीं होती। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से विभक्त नहीं होता। एक संस्कृत कवि ने कहा है-- _ 'सन्धत्ते सरल सूची, वक्रा छेदाय कर्तरी'-सुई सरल होती है, इसलिए जोडती है, दो को एक करती है और कैंची टेढी होती है. इसलिए वह काटती है, एक को दो करती है।'
सरलता मनों को सांधती है। माया कैंची का काम करती है, मनों के टुकड़े-टुकड़े कर डालती है।
हमारे नीतिशास्त्रियों ने कहा है, 'मनुष्य को बहुत सरल नहीं होना चाहिए। देखो, जो वृक्ष बहुत सरल-सीधे होते हैं, वे काट दिये जाते हैं
और जो टेढ़े होते हैं, वे नहीं काटे जाते।' इस नीति-वाक्य ने मानवीय हृदय में प्रचलित सहज दीप को बुझाने का काम किया हैं। मैं आपसे पूछना चाहता हूं, क्या आप टेढ़े शरीर वाले मनुष्य को पसन्द करते हैं? क्या आप टेढ़ी बात कहने वाले का विश्वास करते हैं? क्या कुटिल व्यवहार करने वाले को आप पसन्द करते हैं? क्या मन में कुटिलता रखने वाले को आप पसन्द करते हैं? इन सब प्रश्नों का उत्तर नकार की भाषा में होगा अर्थात् आप उन्हें पसन्द नहीं करते हैं। तब यह कैसे माना जाए कि हमें बहुत सरल नहीं होना चाहिए? यदि हर आदमी का मन खुली पोथी जैसा होता तो मनुष्य मनुष्य से डरता ही नहीं। आज
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