Book Title: Main Mera Man Meri Shanti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 227
________________ निगमन २१३ है? ध्यान, मौन आदि तो कम होते हैं। यह साधना-गृह है या मनोरंजन-गृह? उत्तर-जो साधना की निश्चित रेखा बना रखी है, उसी के भीतर साधना है, बाहर नहीं, यह क्यों मान रखा है? साधना क्या है? पहले इसे समझें। ध्यान, मौन, शिथिलीकरण साधना है, पर क्या बोलने-चलने, खाने-पीने, उठने-बैठने में साधना नहीं है? एक-दूसरे के साथ सद्व्यवहार करना साधना नहीं है? यदि नहीं, तो मैं कहूंगा साधना का अर्थ आपकी समझ में ही नहीं आया। दो राजा अपने-अपने रथ पर चढ़ शिकार करे गए। एक का रथ जल गया। दूसरे का घोड़ा मर गया। दोनों अपूर्ण हो गए। जंगल से वापस आने में कठिनाई हुई। दोनों ने समन्वय किया। एक ने घोड़ा दिया और दूसरे ने रथ। रथ पूर्ण हो गया, दोनों बैठ नगर में आ गए। इसे दग्धाश्वरथ न्याय कहते हैं। साधना की भी यही बात है। उसका एकांगी रूप पार ले जाने वाला नहीं होता। अमुक देश, काल व प्रवृत्ति में साधना हो सकती है, अन्यत्र नहीं हो सकती, यह आग्रह जहां है, वहां साधना की अखण्डता मान्य नहीं है। दो घंटे साधना में बीते और शेष बाईस घंटे असाधना में, यह जीवन की द्विविधा है। इससे दूसरों के मन में धर्म के प्रति श्रद्धा नहीं होती। प्रातःकाल उठने से लेकर सोने तक जीवन के हर व्यवहार में द्विविधा न रहे, साधना की एकलयता रहे, यही अणुव्रत शब्द से साधना का भाव प्रकट होता है। फिर भी 'अणुव्रत साधना शिविर' में अणुव्रत शब्द के आगे साधना शब्द और जोड़ा गया है। संस्कृत-व्याकरण में 'वीप्सा' शब्द आता है। वीप्सा का अर्थ है- 'व्याप्तुमिच्छा'-अर्थात् व्याप्त होने की इच्छा। वीप्सा में दो बार, चार गर कहना दोष नहीं है। वीप्सा के अर्थ में ही अणुव्रत शब्द के आगे साधना का योग किया गया है। ध्यान, मौन, आसन आदि आवश्यक नहीं, ऐसा नहीं है। पर वे ही साधना नहीं हैं। दिन-भर के व्यवहार में जागरूक रहना साधना है। एक व्यक्ति अभी शिविर में रहा, बहुत धार्मिक था। बड़ी निष्ठा के साथ चार-पांच घंटे ध्यान, मौन आदि करता था। पर व्यवहार की उपेक्षा करता था। पत्नी और ससुराल वाले सब नाराज थे। उन लोगों की भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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