Book Title: Main Mera Man Meri Shanti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 226
________________ २१२ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति कहा-'आज मैं जो कह रहा हूं, वह मेरी दृष्टि में शुद्ध है। कल कोई बहुश्रुत या तत्त्वविद् हो, उसे यह ठीक न लगे तो इसे छोड़ दे।' उन्होंने कभी ऐसी लक्ष्मण-रेखा नहीं खींची कि इस रेखा से बाहर सत्य नहीं है। ऐसा कहना आग्रह हो जाता है। ___कोई भी शब्द, भाषा या पदार्थ ऐसा नहीं है जो सत्य की परिपूर्ण व्याख्या दे सके। सारे विचारों को हम इस संदर्भ में देखें। सापेक्ष सत्य मानकर उसे स्वीकार करें। समग्रता से जो बात आएगी, वह ग्राह्य होगी। सूर्य चला जाता है, फिर अंधकार छा जाता है। पुराने जमाने में दीप से प्रकाश करते थे, आज बिजली से प्रकाश किया जाता है। प्रकाश के अनेक साधन हो सकते हैं और उनमें तारतम्य भी हो सकता है। परन्तु प्रकाश प्रकाश है। सूर्य प्रकाश देता है और दीया भी प्रकाश देता है। वैसे ही सत्य चाहे सर्वज्ञ द्वारा कहा हुआ तो या किसी तुच्छ व्यक्ति द्वारा। सत्य सत्य है, उसमें अन्तर नहीं। मात्रा में तारतम्य हो सकता है। समग्रता के संदर्भ में आप सारी प्रक्रिया पर विचार करेंगे तो मुझे विश्वास है कि आप मानसिक शान्ति से वंचित नहीं रहेंगे। ६. निगमन यदग्राह्यं न गृह्णाति, गृहीतं नापि मुंचति । जानाति सर्वथा सर्वं, तत् स्वसवेद्यमस्म्यहम् ॥ आचार्य पूज्यपाद ने अहं की व्याख्या करते हुए कहा-जो अग्राह्य का ग्रहण नहीं करता, गृहीत को छोड़ता नहीं, सबको सर्वथा जानता है वह 'अहं' है। जहां अग्राह्य का ग्रहण, गृहीत का मोचन और असर्व का ज्ञान है, वहां अहं की सत्ता प्राप्त नहीं है। जो अहं की कल्पना है, वही अहिंसक समाज की कल्पना है। स्वभाव कभी त्यक्त नहीं होता। त्यक्त विभाव होता है। जो 'अहं' से इतर है, उसे त्यागना है यही अणुव्रत है। प्रश्न-अणुव्रत-साधना-शिविर में खेती, उत्पादन, औजार आदि की चर्चा होती है, अच्छा खाते-पीते हैं, मनोरंजन करते हैं। क्या यही साधना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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