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इन्द्रिय-शुद्धि १४१ नींद स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक तत्त्व है। क्योंकि हर प्रवृत्ति के साथ हमारे शरीर में विष पैदा होता है। कुछ शरीरशास्त्रियों ने इस सम्बन्ध में बहुत अन्वेषण किए हैं। उन्होंने कई प्रकार के विषों का पता भी लगाया है। नींद के द्वारा हम उन विषों को बाहर फेंकते हैं और शरीर की क्षतिपूर्ति भी करते हैं। नींद कम आती है, उससे कोष्ठ-बद्धता हो जाती है और स्वास्थ्य का संतुलन बिगड़ जाता है। ___मैं प्रासंगिक चर्चाओं से मुक्त होकर अब फिर उसी मूल विषय का स्पर्श कर रहा हूं। शरीर और मन का गहरा सम्बन्ध है। शरीर का मन पर और मन का शरीर पर असर होता है। शरीर की स्वस्थता का केन्द्र उदर है, अतः उदर-शुद्धि के सन्दर्भ को छोड़कर इस मानसिक शान्ति की बात सोचें तो वह सोचना पृष्ठभूमि से शून्य होगा।
२. इन्द्रिय-शुद्धि
अनेक लोगों की शिकायत है कि उनका आत्म-निश्चय टिकता नहीं। वह बार-बार स्खलित हो जाता है। ऐसा क्यों होता है, इस पर हमें सोचना है।
आत्म-निश्चय से स्खलित होने के कारणों की मीमांसा में आचार्य शुभचन्द्र ने लिखा है :
'अनिरुद्धाक्षसन्तानाः, अजितोग्रपरीषहाः ।
अत्यक्तचित्तचापल्याः, प्रस्खलन्त्यात्मनिश्चये ॥' जिन व्यक्तियों ने इन्द्रियों के प्रवृत्ति-क्रम का निरोध नहीं किया या इन्द्रियों को आत्मलीन नहीं किया, जिन्होंने कष्ट-सहन का अभ्यास नहीं किया और जिन्होंने चित्त की चंचलता से छुट्टी नहीं पायी, वे लोग अपने निश्चय से स्खलित हो जाते हैं। ___आज हमें पहले कारण पर चिन्तन करना है। इन्द्रियों के प्रवृत्ति-क्रम का निरोध या उनकी लीनता कैसे हो? शरीर-रचना की दृष्टि से मनुष्य पंचेन्द्रिय-स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र-युक्त है और उपयोग की दृष्टि से वह एकेन्द्रिय है-एक समय में एक इन्द्रिय का ही
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