________________
मानसिक एकाग्रता १७
प्रवृत्ति दोनों के लिए अनिवार्य है। यह अनिवार्यता तब तक चलेगी, जब तक शरीर का अस्तित्व रहता है।
मुनि सुख- पिण्डस्थ, पदस्थ आदि में क्रमबद्धता है या नहीं?
मुनिश्री-क्रमबद्धता के विषय में कभी सोचा नहीं, पर चाहें तो उसे ढूंढ़ सकते हैं।
इसी बीच उमरावचन्दजी मेहता बोल उठे-शरीर, वाणी और मन की स्थिरता द्वारा आत्मा तक पहुंचना है। रूपातीत आत्मा है। पहले तीनों शरीर, वाणी और मन की स्थिरता के निमित्त हैं। ___ मुनिश्री-कुछ ग्रन्थों में भिन्न क्रम भी मिलता है पर प्रस्तुत क्रम सार्थक भी है। पिण्ड (शरीर), पद (भाषा) और रूप में दूसरे की अपेक्षा पहला अधिक निकट है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org