Book Title: Main Mera Man Meri Shanti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 210
________________ १६६ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति पचास प्रकार के साग चाहिए। ऐसा सम्भव नहीं। इस असंभवता को मिटाने के लिए रुचि का सामंजस्य आवश्यक होता है। यह रुचि का सामंजस्य ही सहिष्णुता है। इसके अभाव में योग नहीं, वियोग की स्थिति हो जाती है। ... संघीय शक्ति के निर्माण व सुरक्षा के लिए सहिष्णुता अत्यन्त अपेक्षित है। जो प्रमुख हो उसके लिए और अधिक। श्रीकृष्ण गणतंत्र के प्रमुख थे। अक्रूर और भोजवंशी नरेश विरोधी दल के नेता थे। वे भी कृष्ण पर तीव्र प्रहार करते थे। एक दिन कृष्ण उनकी आलोचना से खिन्न हो गए थे। इतने में नारदजी आ गए। पूछा-'उदास क्यों हैं? कृष्ण ने उत्तर दिया-'इनसे मैं तंग आ गया हूं। कोई मार्ग बताइये, अब क्या करूं? नारद ने कहा-'दो आपदाएं होती हैं-बाह्य और आन्तरिक। आपके सामने आन्तरिक आपदा है। बाह्य आपदा को युक्ति-शस्त्र दूर कर सकता है। आन्तरिक आपदा में शस्त्र काम नहीं देता।' 'तो फिर क्या किया जाए? तब नारद ने अनायस शस्त्र से उनकी जीभ बन्द करने की सलाह दी 'अनायसेन शस्त्रेन, मूदुना हृदयच्छिदा । जिहामुद्धर सर्वेषा, परिमृज्यानुमृज्य च ।' शस्त्र एक ही प्रकार का नहीं होता। बादशाह ने बीरबल से पूछा-'शस्त्र क्या है? बीरबल ने उत्तर दिया- 'अवसर'। बादशाह ने कहा-'क्या कह रहे हो? तलवार, भाला, तोप-ये तो शस्त्र हो सकते हैं पर अवसर कैसे? बीरबल ने कहा-'कभी प्रमाणित करूंगा।' एक दिन बादशाह की सवारी निकल रही थी। हाथी उन्मत्त हो दौड़ने लगा। बीरबल ने आगे बढ़ चारों तरफ देखा, एक कुत्ते के सिवाय कुछ नहीं था। तत्काल उसने कुत्ते की टांग पकड़कर घुमाया और हाथी पर दे मारा। हाथी वापस मुड़ गया। कुत्ता क्या शस्त्र है? पर अवसर था, कुत्ता शस्त्र बन गया। शास्त्र भी कभी-कभी शस्त्र बन जाते हैं। शास्त्र और शस्त्र में केवल एक मात्रा का भेद है। शब्दों की चर्चा और शास्त्रों के प्रमाण से मनुष्य जितना पथमूढ़ बनता है, उतना शस्त्र से भी नहीं बनता। कभी-कभी प्रयोग में शास्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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