Book Title: Main Mera Man Meri Shanti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 217
________________ परिस्थिति का प्रबोध २०३ धर्म का अतिसेवन काम और धन को पीड़ित करता है। काम का अतिसेवन धर्म और धन को पीड़ित करता है। धन का अतिसेवन धर्म और काम को पीड़ित करता है। एकांगी दृष्टिकोण अपूर्ण होता है। बाह्य वातावरण में समता तभी फलित होती है जब उसके नीचे सौन्दर्य, प्रेम और पवित्रता होती है। यह न्याय के द्वारा संभावित है। मन की शान्ति तब तक नहीं, जब तक न्याय नहीं। मन की शान्ति बाह्य वातावरण में नहीं, मन में होती है। मन अनाकुल हो तो मनुष्य कोलाहल में रहकर भी शान्ति पा सकता है और मन अनाकुल न हो तो वह जंगल में रहकर भी शान्ति नहीं पा सकता। 'यह गांव है, यह जंगल है'-यह कल्पना उन लोगों की है, जो दृष्टात्मा नहीं हैं। जो आत्मदर्शी हैं, उनके मन में गांव और जंगल का भेद नहीं रहता। हम जितने बाहर फैले हुए हैं उतने ही आत्मा से दूर जा रहे हैं। यह अन्याय है। आत्मा में प्रतिष्ठित होना न्याय है। आत्म-प्रतिष्ठा और न्याय की भाषा एक होने पर अन्याय का प्रश्न नहीं रहता। ७. परिस्थिति का प्रबोध सूर्य की रश्मियां जैसे ही धरातल का स्पर्श करती हैं, वैसे ही अंधकार के परमाणु आलोक में बदल जाते हैं। यदि पदार्थ-जगत् में बदलने की क्षमता नहीं होती तो जो जैसे है, वह वैसा ही रहता। किन्तु ऐसा नहीं है। जो है, वह बदलता है और प्रतिक्षण बदलता है। पदार्थ में एक ऐसा परिवर्तन होता है, जो हमारी स्थूल-दृष्टि से गम्य नहीं है। वह सूक्ष्म होता है, इसलिए उस परिवर्तन से हमें रूपान्तरण की प्रतीति नहीं होती। स्थूल हेतुओं से होने वाले परिवर्तन स्थूल होते हैं और उनके हेतु भी स्पष्ट होते हैं। कुछ हेतु अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं और कुछ हेतु अपनी उपस्थिति तक अपना प्रभाव डालते हैं और अनुपस्थिति में वह प्रभाव मिट जाता है। लाल कपड़े से प्रभावित होकर स्फटिक लाल हो जाता है और लाल कपड़े के हट जाने पर उसकी लालिमा समाप्त हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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