Book Title: Main Mera Man Meri Shanti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 196
________________ १८२ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति चन्दनबाला का पिता राजा दधिवाहन था । शतानीक ने आक्रमण किया। वह युद्ध के भय से भाग निकला। सैनिक आए, नगर को लूटा | रानी को मरना पड़ा । चन्दनबाला को उठा ले गए । क्या हम मान लें, राजा भागा, उसके पीछे अहिंसा की प्रेरणा थी? अहिंसा नहीं, प्रत्युत कायरता थी । सबके साथ विश्वासघात और कर्तव्य के प्रति गैरजिम्मेदारी । वह वैराग्य नहीं, दायित्व के प्रति विमुखता थी । यदि वैराग्य होता तो वह राज्य के दायित्व को अपने कन्धों पर ओढ़ता भी क्यों? चन्दन - दायित्व ले और उसे निभाए तो क्या धर्म होता है? मुनिश्री - व्यवहार के प्रति सावधान रहने वाला दूसरों के मन में धर्म के प्रति रुचि पैदा करता है । हम छह साधु हैं । एक बीमार है । मैं सोचूं - 'इधर समय लगाने में मेरे ध्यान में बाधा आएगी। अगला लिखाकर लाया है। स्वयं अपना कर्म अपने आप भोगना है, मैं क्या करूं? यदि मैं ऐसा सोचूं तो मैं धर्म के प्रति विमुखता पैदा करूंगा, सम्मुखता कभी नहीं । चन्दन - पत्नी बीमार है, ध्यान का समय आ गया । उस समय पति ध्यान करे या पत्नी की सेवा ? मुनिश्री - ध्यान को मैं बहुत आवश्यक मानता हूं पर व्यवहार में रहने वाला सेवा का लोप कैसे करेगा, जहां दूसरों के मन में धर्म और धार्मिक के प्रति विमुखता उत्पन्न होने का प्रसंग हो । जैनेन्द्र- सहानुभूति रहती है तो कोई व्यवहार बुरा नहीं है । व्यवहार की विमुखता अपने आप में क्रूरता है । मुनिश्री - अहिंसा की बात परिणाम - काल में सोचने की अधिक होती है, जबकि होनी चाहिए स्वीकार - काल में । एक बार आचार्यश्री ने कहा था - राष्ट्र को रखना चाहते हैं, उस पर अधिकार रखना चाहते हैं तब अहिंसा की बात नहीं सोचते, उसकी बात तो केवल सुरक्षा के समय सोचते हैं। हिंसा का मूल परिग्रह की सुरक्षा में नहीं किन्तु स्वीकार में है 1 फूलकुमारी - परिवार बढ़ने पर अलग हो जाएं, फिर व्यवहार की स्थिति क्या होगी ? मुनिश्री - महावीर और बुद्ध घर से चले गए, उन पर दायित्व नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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