Book Title: Main Mera Man Meri Shanti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 205
________________ ४. सहानुभूति सहानुभूति में तीन शब्द हैं-सह, अनु और भूति । भूति यानी होना - अस्तित्व । मैं हूं, यह मेरा अस्तित्व है, मेरा व्यक्तित्व है अध्यात्मक में वैयक्तिकता होती है, उसमें व्यक्ति होता है । मैं हूं, यह शुद्ध अस्तित्व है । 'मैं अमुक हूं, यह सामाजिक अस्तित्व है । मैं विद्वान हूं, धनी हूं, धार्मिक हूं, 'हूं' के पहले विशेषण लगा कि व्यक्ति भूति से अनुभूति के जगत् में आ गया। मैं कई बार सोचा करता था कि व्यक्ति और समाज को बांटने वाली रेखा क्या है? अब मुझे सूझ रही है कि वह 'भूति' है । इससे इधर व्यक्ति है और उधर समाज । जुड़ने पर 'भूति' का अर्थ होता है - किसी के पीछे होना । अनुभूति स्वतन्त्र नहीं होती । वह ऐन्द्रियक हो या मानसिक, उसका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता । सहानुभूति १६१ हमारे सामाजिक जीवन की स्वतन्त्रता सापेक्ष होती है । इन्द्रिय और मानसिक जगत् परिपूर्ण निरपेक्ष नहीं हो सकता । स्वतन्त्रता की भिन्न-भिन्न मर्यादाएं हैं । स्वतन्त्रता वहां होती है, जहां केवल क्रिया हो, प्रतिक्रिया के लिए अवकाश न हो। अनुभूति में सारी प्रतिक्रियाएं होती हैं । एक बच्चा मिट्टी का ढेला फेंकता है । दूसरा वापस ढेला फेंकता है । यह क्रिया की प्रतिक्रिया है । प्रश्न आता है कि पहले ने ढेला फेंका, क्या वह क्रिया नहीं है ? नहीं, वह भी प्रतिक्रिया है । भूति के बिना कहीं क्रिया नहीं होती । हर क्रिया संस्कार और स्मृति से परतंत्र होती है। स्मृति से बाधित या प्रेरित कोई भी क्रिया स्वतंत्र हो सकती है, ऐसा नहीं लगता । प्रतिक्रिया का अर्थ है - व्यक्तित्व का प्रतिबन्ध । सामाजिक जगत् में क्रिया नहीं किन्तु प्रतिक्रिया होती है | अनुभूति सामाजिकता है। एक शब्द 'सह' और लगा, फिर तो वह शुद्ध सामाजिकता हो गई। जैसे - सह - शिक्षा, सह-चिन्तन, सह-भोजन आदि-आदि। सहानुभूति सामाजिकता का बड़ा गुण है। जहां अनुभूति 'सह' नहीं होती, वहां स्वार्थ को विकसित होने का अवसर मिलता है। एक व्यक्ति शोषण इसलिए करता है कि उसमें सहानुभूति नहीं है । यदि सहानुभूति हो तो वह शोषण नहीं कर सकता । अपने समान दूसरे के अस्तित्व का अनुभव करे, वह शोषण व अन्याय कभी नहीं कर सकता । क्रूरता का विकास जो हुआ और हो रहा है, वह सहानुभूति की निरपेक्षता से हुआ है । सहानुभूति 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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