Book Title: Main Mera Man Meri Shanti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 190
________________ १७६ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति के अधीन होना स्वाभाविक है। विचार के पीछे प्रश्न ही नहीं, व्यक्ति के अपने संस्कार भी हैं और बाह्य प्रतिक्रिया भी। मन में विचार उठता है, यह क्यों? क्योंकि आपके अपने संस्कार हैं। हर विचार अपनी प्रतिक्रिया छोड़ जाता है। आज कोई विचार करते हैं, उसकी प्रतिक्रिया शेष रहती है, तभी स्मृति होती है। बाह्य परिस्थिति का प्रभाव भी होता। राजेन्द्र-हमारे सारे विचार सामाजिक घटनाओं से तो छनकर आ रहे हैं। मुनिश्री-आ सकते हैं, पर यह ऐकान्तिक बात है। हमें बहुत बार स्थूल मन (चेतन मन) के पीछे जो अचेतन मन है, उससे निर्देश मिलते राजेन्द्र-क्या उससे कुछ नयी निष्पत्ति होती है? मुनिश्री-ऐसी कोई घटना नहीं हो सकती, जिसे हम सोलह आना नयी कह सकें। नरसिंह का अवतार एक नयी घटना है पर उसमें नर और सिंह दोनों का योग है। सारी विचित्रता योगज निष्पत्ति है। वैज्ञानिक प्रयोग भी बिल्कुल नये नहीं हैं। दो का होना नहीं है। नया है अनेक में से किन्हीं दो का योग। जितनी औषधियां हैं, वे क्या हैं? वनस्पति के योग ही तो हैं। आदि से अन्त तक कोई नयी सृष्टि नहीं है। योग का प्रयोग नया है। जैनेन्द्र-विचार की क्रिया का कारण भीतर नहीं है। क्रिया का कारण व्याप्त परिस्थिति या समय है। राजेन्द्र-अहंता हमारी प्रतिक्रिया का पिण्ड है। मुनिश्री-अहंता के पीछे एक और भी है जो उससे भिन्न है और योगज है। गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त न्यूटन ने दिया। सिद्धान्त की कल्पना बाह्य निमित्त से आयी। उसके पीछे कोई शास्त्रीय ज्ञान नहीं था। तत्काल सेव को गिरते देख कल्पना हई। गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त यदि केवल घटनाओं की प्रतिक्रिया होती तो वह पहले भी हो सकता था और किसी भी व्यक्ति को हो सकता था। वह न्यूटन को ही क्यों हुआ? किसी दूसरे को क्यों नहीं हुआ? इस चर्चा को समात करने से पूर्व हम इतना और समझ लें कि व्यक्ति की अपनी योग्यता और बाह्य घटना-दोनों के योग से कोई नया ज्ञान निष्पन्न होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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