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११२ मैं : मेरा मन : मेरी शान्ति
होता है और जब संयम प्रधान और नियम गौण होता है तब धर्म तेजस्वी बनता है।
२३. तप
एक आदमी चला जा रहा था। जेठ की दुपहरी थी। चिलचिलाती धूप
और अंगारे बरसाती लू। उसका शरीर तप उठा। उसने सोचा, यह सूर्य नहीं होता तो दुनिया कितनी सुन्दर होती?
वर्षा ऋतु आयी। आकाश बादलों से घिर गया। भूमि जलजलाकार हो गई। कई दिन बीत गए, बादलों ने आकाश को मुक्ति नहीं दी। सूर्य का सम्बन्ध भूलोक से विच्छिन्न हो गया। न पूरा प्रकाश, न धूप और लू ।
वही आदमी वैद्य के पास पहुंचा। वैद्य के पूछने पर बोला, 'महाराज! पाचन बिगड़ गया है, इसलिए दवा लेने आया हूं।
वैद्य ने कहा, 'सेठजी! यह बदलाई मौसम है, सूर्य भगवान् की रश्मियां भूलोक पर नहीं पहुंचती हैं। इससे अग्नि मंद हो जाती है, कृपया कुछ कम खाया करें।' सेठ दवा लिये बिना ही लौट गया। वह मन-ही-मन सोचता जा रहा था कि सूर्य नहीं होता तो यह दुनिया कितनी भयंकर होती!
सूर्य हमारी प्राणशक्ति का स्रोत है। क्या तपस्या हमारी प्राणशक्ति का स्रोत नहीं है? जो मनुष्य कम खाता है, वह जितना स्वस्थ, संतुलित और प्रसन्न होता है, उतना वह नहीं होता जो बहुत खाता है। कम खाना तप है। आचारांग में लिखा है- 'भगवान् महावीर रुग्ण नहीं थे, फिर भी कम खाते थे।' मैं इस तथ्य को इस भाषा में प्रस्तुत करना चाहता हूं कि भगवान् कम खाते थे, इसीलिए स्वस्थ थे। उपवास को चिकित्सा पद्धति का रूप मिल चुका है। किन्तु वह केवल शारीरिक चिकित्सा पद्धति नहीं है। उससे चिर अर्जित मानसिक मल भी विसर्जित होते हैं। उपवास एक तप है। महात्मा गांधी ने अस्वाद को एक व्रत माना था। जो आदमी अपनी जीभ को जीत लेता है, उसे पराजित करने की क्षमता किसी भी इन्द्रिय में नहीं होती। अस्वाद महान् तप है।
हमारा शरीर बहुत चंचल है। हमारी इन्द्रियां बहुत चंचल हैं। हमारा
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