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सू' चालतो हो । होळ -होळे मिनखां री बढ़ोतरी सू कळपत्रक्ष कम पड़वा लागा तद गुजारा खातर मिनख आपस मे लड़ता-झगड़ता। श्रा देख ऋषभ लोगां ने खेती करण, लिखण-पढरण अर बीजा काम धन्धा री सीख दीवी । आ मानी कै ऋपभ पुरुषां नै वहत्तर पर लुगायां ने चौंसठ कळावां पण सिखाई।
ऋषभ लुगायाँ री पढ़ाई-लिखाई रा हामी हा । अापणी बेटो सुन्दरी नै आप अक ज्ञान अर ब्राह्मो नै लिपि ज्ञान सिखायो । आगे जा'र प्रा लिपि ब्राह्मी लिपि रै नाम सूप्रसिद्ध हुई । इण भांत ऋषभ प्रजा रोपाळण-पोपण अर मार्गदर्शन घरणा बरसांताई करियो । ऋषभ प्रा मानता हा के धरम र मारग पर चाल्यां विगर आत्मिक सान्ति कोनो मिल । प्रा सोच वी आपण बड़े पुत्र भरत नै राज रो भार सूप'र खुद विरक्त हो र आतम साधना रे मारग पर प्रागै वढ्या ।
ऋपभ चैत बद आठम रै दिन मुनि दीक्षा अंगीकार करी। दीक्षा धारण करवासू पैली आप आपणी सम्पत्ति जरुरतमंद लोगों में वांटी अर या वात समझाई कै सम्पत्ति री महत्ता भोग में नीं हो र त्याग में है।
मुनि वण' र ऋषभ घणी कठोर तपस्या करणी सरु करी । छह माह रो अनसन वरत धारण कर प्रभु ध्यान साधना में लीन च्हैग्या । छह माह वीतवा पर प्रभु भिक्षा खातर गांव-गांव बिहार करता यऱ्या । इण समै में वी मौन रैवता हा। ई कारण लोग प्रा नी जाण सक्या के प्रभु नै किरण चीज री चावना है । मिनख इणांने भेंट में कीमती गैणां गाभा पर हाथी-घोड़ा देवता पण प्रभु बिगर काई चीजवसत्त लियां, पाछा फिर जावता। यू करता-करतां छह माह पोरु बीतग्या।
एकदा प्रभु विचरण करता-करतां हस्तिनापुर पधारिया। अठारो राजा सोमयश हो । ई रो छोटो भाई श्रेयांसकुमार धार्मिक