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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन भाई वर्धमान कुमार को ज्ञान और जीवन की व्याख्या समझाने का सुंदर ढंग से काव्य में अंकन किया है। ‘परिणय सूत्र' सर्ग में कविने विवाह प्रसंग का सजीव चित्रण किया है। शादी के पश्चात् माता द्वारा बेटी यशोदा को दिये गये हितोपदेश का अंकन किया है । यशोदा के विरह वर्णन के करूण दृश्य को कविने अनूठे ढंग से व्यक्त किया है। 'सदगृहस्थ सरिता' सर्ग में राजकुमार वर्धमान और रानी यशोदा ने माता-पिता की सेवा का दृढ संकल्प करना, गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों को निभाना और लड़की को जन्म देना आदि विस्तृत वर्णन हुआ है। ‘प्रव्रज्या प्रस्ताव' सर्ग में कविने माता-पिता व बड़े भाई से दिक्षा की आज्ञा प्रदान करने का, वर्धमान कुमार को समझाना, माता-पिता के स्वर्गवास के बाद दिक्षा ग्रहण करना आदि बातें कविने तर्क सहित समझायी है। बड़े भैया का छोटे भैया का प्रति प्रेम वात्सल्य तथा छोटे भाई का बड़े भाई के प्रति मान-मर्यादा, आदर, सन्मान, आज्ञा-पालन करना आदि विविध बातें प्रस्तुत कर कविने काव्य के द्वारा जनजगत को बोध दिया है कि माता-पिता एवं परिवार के साथ किस प्रकार विनयादि व्यवहार रखना चाहिए ? नन्दीवर्धन उपदेशामृत सर्ग में कविने नन्दीवर्धन के शब्दों में छोटे भाई को समझाने का वर्णन किया है। भाई-भाई में परस्पर कितना स्नहे है यह तथ्य इस सर्ग से ज्ञात होता है । 'संन्यस्तसर्ग' में भगवान की वैराग्यपूर्ण दशा, लौकांतिक देवादिद्वारा दिक्षा का भव्य समारोह, दैनिक वाजिंत्र, चारों और पुष्पों की वर्षा, सुगंधमयी वातावरण, प्रकृति में भी अनुकूल वातावरण आदि का चित्रण कवि ने सजीव रूप से प्रस्तुत किया है। 'तपस्या' सर्ग में महावीर सुख-साधनों को छोड़कर साधना के कंटकाकीर्ण पथ पर बढ़ चले । उतार-चढ़ाव, अनुकूलता-प्रतिकूलता आदि संयोगों में भी भगवान लेशमात्र भी विचलित नहीं हुए उसी का वर्णन कविने इस सर्ग में किया है। “चंदनाउद्धार" सर्ग में कविने चंदना को किन-किन परिस्थितियों में गुजरना पड़ा तत पश्चात् नारी का उत्थान, भगवानने कैसे किया उसीका उत्तम चित्रण काव्य में किया है। 'ऋजुकूला जृम्भि' का सर्ग में कवि ने भगवान के केवल ज्ञान प्राप्ति का वर्णन दिया है। समवशरण परिषद' सर्ग में भगवान को केवल ज्ञान के पश्चात् देवों द्वारा समवशरण की भव्य और विराट रचना, ग्यारह गणधरों की शंका का समाधान, उपदेश सुनना, भगवान के शिष्य बनना आदि का वर्णन इस सर्ग में है। 'यशोदा विरह' सर्ग में कविने यशोदा का विरह वर्णन किया है। वह लौकिक न होकर अलौकिक है क्योंकि भगवान महावीर साधारण पुरूष नहीं थे और उनके साथ संबंध नारी सामान्य नहीं थी। यशोदा भगवान के प्रति अनुनय-विनय में अपने अन्तर की निश्चल और अलौकिक भावना प्रगट करती है। वह
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