Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Author(s): Divyagunashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 242
________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन बह जाती है बाढ़ में, बड़ी बड़ी मीनार ॥ *** २. ३. ४. ५. वही, १ सारी दुनिया स्वार्थ की, मतलब बिना न मित्र । पृ. १७९ उपर उज्ज्वल देह है, अन्दर स्याह चरित्र ॥ २ *** सदा न यौवन रुप पर, रौनक है दिन चार । जिसे कामिनी कह रहे, वह नंगी तलवार ॥ ३ *** सीधे को सभी सताते हैं, टेढ़े से दुनिया डरती है। *** योगी जब भोगी बन जाते, जीतहार बनती है । जब भारत माता रोती है, भूमि वीर जनती है ॥ 14 *** " वीरायण" : कवि मित्रजी, “जन्म जन्म के दीप", सर्ग ६, पृ. १४७ वही, पृ. १४७ वही, पृ. १५३ वही, " प्यास और अंधेरा", सर्ग-७, पृ. १७३ खानपान सब शुद्ध हो, रखना शुद्ध चरित्र | २२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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