Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Author(s): Divyagunashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 248
________________ २३३ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन सागर में ज्यों सरिता रहती, बादल में ज्यों रहता जल। वीणा में ध्वनि शाश्वत रहती, कालचक्र में रहता पल ॥' कविने काव्यमें रानी त्रिशलादेवी की शादी के पश्चात् विरह का करूण चित्रण उपमा अलंकार से दर्शनीय बन पड़ा है पिता फूट कर ऐसे रोये, जैसे सावन भादो। *** वात्सल्यमयी माता त्रिशला राजा सिद्धार्थ के साथ राज कुमार को वैराग्य के प्रति इन्कार करने का तर्क करती है उसी क्षण वर्धमान कुमार का वहाँ पदार्पण होना उसीका चित्रण कविने पद में उपमा अलंकार से चित्रित किया है इतने में आया वीर वहाँ, सब तिथियों के चन्दा जैसा। ऐसा अरुणोदय हुआ मित्र, फिर कभी न रवि देखा वैसा॥ वह आया जैसे ज्वाला में, सावन बरसे भादों बरसे। वह प्रकट हुआ जैसे कोई, वरदान प्रकट हो शंकर से ॥ *** विदाई के समय नगर जनों की करुणा और आशीर्वाद : जैसे कमल सूर्य से खिलते, तुम से भारत देश खिले। *** कवि ने महावीर काव्य में भगवान महावीर की दीक्षा के पश्चात् इन्द्र, देव आदि श्रद्धा से स्तुति करते है - तुमने प्राणों की बेल सुधा रस में बोई مهب ه “भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “यशोदा विरह", सर्ग-१५, पृ.१६२ “वीरायण" : कवि मित्रजी, “तालकुमुदिनी', सर्ग-३, पृ.८५ वही, “विरक्ति", सर्ग-९, पृ.२२१ वही, “वनपथ', सर्ग-१०, पृ.२७१ ه ه Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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