Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Author(s): Divyagunashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 270
________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन समान सवैया : समान सवैया के प्रत्येक चरण में ३२ मात्राएँ होती हैं १६, १६ मात्राओं पर यति रहती है। अन्त में दो गुरू होते हैं। जितशत्रु की सुन्दर कन्या संग हम चाह रहे तेरी शादी, है नाम यशोदा लड़की का अति रूपवान है शहजादी । महाराजा भी आकर बोले यह उत्तर देना ही होगा, यह प्रश्न जटिल बनता, जाता, इसको हल करना ही होगा ।। १ *** मत्तगयन्द सवैया : होता है । २. ३. सुनकर सेठानी गई तभी मेंढ़कको घर पर ले आई, बस तभी ढिंढोरा सुना वीर पूजा की इसको सुधि आई, इसने भी पूजा करने की निश्चय से तब मन में ठानी, इक कमल पांखुड़ी मुंह में ले चल दिया सुमर कर जिन वाणी, सात भगण ( SII) और दो गुरू (SS) के क्रम से २३ वर्णो का मत्तगयन्द सवैया अम्बुज सौं जुग पाय बनै, नखर देख नरवत्त भयो भयभारी । नूपुर की झनकार सुनै, हग शोर भयौ दशहू दिश भारी ।। कंदल थंभ बनै जुग जंघ, सुचाल चलै गज की पिय प्यारी । क्षीण बनौ कटि केहरि सौ, तन दामिनि होय रही लज सारी ॥ ३ *** हरिगीतिका : अन्त इस छन्द के प्रत्येक चरण में १६-१२ के विराम से २८ मात्राएँ होती है, में लघु गुरू होते हैं - २५५ सुरसरि की धारा हो जैसेशुद्ध भाव थे जगते । " त्रिशलानन्दन महावीर " : कवि हजारीलाल, पृ. ४४ वही, पृ. ७३ " वर्धमान पुराण" : कवि नवलशाह, अधिकार-७, पद सं. ११०, पृ.७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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